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Showing posts from August, 2020

उन दिनों की बात

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             बात तब की है               जब बहोत छोटी थी मै              ठीक से बोल भी नहीं पाति थी              जब हर बात दिल से हुआ करती थी             बस लबो पे  आके लडखडाती थी              दुनिया की समझ खा़स नहीं थी मुझको               हर कोई अपना लगता था               साथ जो भी खेलता था मेरे              इंसान अच्छा लगता था             शायद यही नासमझी में              मैं कुछ समझ नहीं पायी            हंसते हंसते रो जाती क्यों थी            यह बात जान नहीं पायी            कयूं हर बार छुपन छपाई का खेल              मेरे साथ खेला जाता था             कयूं हरदफा वो मुझे अपने साथ             एक कोठरी में छिपाता था              कयूं उसकी गोदी में बैठ               वो इधर उधर हाथ घुमाता था            कयूं वो बार-बार मेरी फ्रॉक के नीचे से             अपना हाथ घुसाता था           भैया भैया बोलती थी उसको            वो दुकान पे काम करता था             मगर क्या पता था मुझे की वो           भाई बेहेन का रिश्ता  गंदा करता था            दिला तो दू सजा उसको           मगर उसकी शक्ल तक याद

आत्महत्या पर कविता

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                      आत्महत्या पर कविता आज हर रोज़ खुदकुशी की ख़बर आती है, तो सोचता हूँ कि लोग किससे इतना भाग रहे हैं ?आखिर कौन था या क्या हुआ था ऐसा ! जो वो ज़ीने की सारी हिम्मत को हार रहें है? इतनी मुश्किल भी क्या थी उनकी जो हर चीज़ से लड़ना छोड़ दिया। क्यों जि़न्दगी से इतना डर गए वोह, की मौत से भी डरना छोड़ दिया।।   तभी एक चेहरा सामने आता है, जो थोड़ा सा बुढा हो चुका है, काफी ज्यादा झुरियों से भरा हुआ है  हुआ है, बालों का रंग भी वो खो चुका है। शायद अब आंँखों से साफ दिखाई नहीं देता, कानों से भी उतना अच्छा सुनाई नहीं देता। उम्र के आगे कंधे भी थोड़ा सा झुक से गई है, पैरों का भी वही  फुतीलापन दिखाई नहीं देता।।     शरीर के इतना कमजोर होने के बाद भी वो इंसान जिंदगी   से हर रोज़ नई जंग लड़ रहा है। आराम करने का उसका भी मन करता होगा, पर फिर भी धीमी चालों से हर रोज़ आगे बढ़ रहा है। उसने भी तो कितने अपमान सही है, कितने अपनो को उसने खोया है। कई बार बड़ी-बड़ी ठोकरें खाई होगी, शुरुवाती रातों में वो भी भूखे पेट सोया है।।  उस आंँख में अभी भी एक उम्मीद झलकती है, चिल्ला कर कहते हैं -&q

घुंघट प्रथा

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                               घुंघट प्रथा घूंघट शर्म और मर्यादा का पदौ  नहीं बल्कि   औरतों को वह जंजीरें है जिसने औरतों को कई  हक ना लेने से बांध रखा है। औरतों को घुंघट ने चार दीवारों में कैद कर लिया है, और लोग कहीं ना कहीं  यह मान्यता  रखते हैं कि स्त्रियां  बस घर के कामकाज करने के लिए और अपने  पति कि सेवा करने के लिए ही बनी है। आज  भी देश में कई जगहों पर स्त्रियों को सम्मान या उनके अधिकार दिए नहीं जाते, वो आज भी यह सोच रखते हैं कि अगर हम लड़कियों को पढ़ाएंगे तो हमारा किया  हुआ खर्चा बर्बाद हो  जाएगा क्योंकि वो कल किसी और के घर जाने वाली है यहां हम इसे खर्चा करके पढ़ाएंगे और वो उसकी पगार मुफ्त में लेंगे, मगर वो  लोग यह भूल गए कि अपनी बच्ची को या अपनी बेटी  को करियावर में ढेर सारे रुपए या जवेरात देने से अच्छा है उसको एक अच्छा भविष्य देना  ताकि जब कल को वो किसी मुसीबत में हो तो  वो अपने पैरो पे खड़ी होकर कुछ कर पाए ना की अपनी सास या अपने पति के ताने या जूते खाए। आज भी स्त्रियों को कला, कोशल्या, आवदत इस घूंघट के नीचे दब जाते हैं क्यों की अगर किसी लड़की को पढ़ने का शौक हो और 

जीवन पाथ:जीवन के संघर्ष पर कविता

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                   जीवन पथ: जीवन के  संघर्ष  जन्म से लेकर अब तक के सफर में हम अपने जीवन में बहुत कुछ देखते हैं, कुछ खट्टा तो कुछ मीठा, कभी सुख तो कभी दुख का सामना करना पड़ता है फिर भी हम लोग कठिनाइयों को सामना करके आगे बढ़ते जाते हैं ।                                जीवन की इसी संघर्ष पर आधारित एक कविता- जीवन पथ:जीवन के संघर्ष पर कविता आप लोगों के सामने पेश है ।                            इस दुनिया में न जाने कितने रंग हमने देखे हैं         यहाँ तकलीफों के  तमाशे बनते भी बहुत देखें हैं          हँसते हुए को छुपछुप कर रोते भी यहांँ देखे है         फुटपाथों पर बच्चों को सोते भी हमने देखा है         मां को आँचल में सिसकते भी हमने देखा है         अहं मैं घरों को बिखरते भी हमने देखा है          किसी को रोटी के लिए तरसते देखा है         खिलौंनों पर  बचपन की मचलते देखा है         रोटी के लिए तड़पते बूढों को भी हमने देखा है         खिलौनों पर मचलते बचपन को भी यहां देखा है        मुश्किलों में मुंह  मोड़ते भी हमने यहां देखा है        परायों के लिए अपनों को छोड़ते भी देखा है        त

कोरोना वायरस

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इंसान खुद को खुदा ना समझे ईसलिए आफत मचाई है मैं मौत हूँ मुझ में भी  अच्छाई है सोशल होने की बात करते हो  तुम सोशल ही कहां हो  अपने मां बाप को ही नहीं पूछते  मुझ पर क्यों उंगली उठाई है मैं मौत हूँ मुझ में भी अच्छाई है अपनों से अपनी बात कर सको  इसलिए पूरी दुनिया लॉकडाउन करवाई है  तुम खुश नसीब हो जो मुझसे दूर हो  दो  पल साथ बिताओ जिन्होंने जिंदगी  दिलाई है तुम छुट्टियों के लिए तरसते थी ना  अब तो छुट्टियां ही छुट्टियां करवाई है इंसान खुद को खुदा ना समझे  इसलिए आफत मसाई है  मैं मौत हुँ मुझ में भी अच्छाई  है तुम भी भीड़ इकट्ठा मत करना  यह मेरी ताकत है  घर से भी बिल्कुल बाहर मत निकलना  मैंने बाहर पहरी लगाई है  और यह मेरी लड़ाई नहीं है  तुम्हारी खुद से खुद की लड़ाई है  मैं मौत हूं मुझ में भी अच्छाई है  यह अमृत सा पानी जहरीला किया है  जंगलों में तुमने ही आग लगाई है अपने हाथों से कुदरत की मांग उजाडी है  मैं मौत हूँ मुझ में भी अच्छाई है ओ इंसान,  यहां सब कुदरत के कर्जदार हैं, मालिक ना बन  कुदरत की रक्षा कर, दुश्मन ना बन आज नहीं तो कल मुझे रोक ही लोगे यह सिर्फ सबक है इससे सी

बेचैन मन : एक कविता

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                      बेचौन मन :  एक कविता                       खामोश इतनी की,                       शोर मचाने की तलब हैं मन                       आस नहीं है फिर भी                       कैसी तलाश में है यह कदम।                       खुश भी हूं पर                       उस मुस्कुराहट को ढूंढ रहे हैं हम                      पत्थर समझ लेते हैं मुझे मेरो हो अपने                       बर्फ से पिघले है पर बेखबर है सब                      मेरे अल्फ़ाज़ में भी जिक्र नहीं                       बस एक वैसा किस्सा है हम।                       और ऐसा परिंदा भी नहीं हूं ,                       जो कुछ जख्मों से दम तोड़ दे हम                      शुरुआत भले ही अच्छो ना हो                      पर इतनी आसानी से कलम नहीं छोड़ेंगे हम! 

उम्मीद की किरण

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vo lodki

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Naa khud ka koi dream tha Aur nahi khud ka koi point of view Jo tha vas vo akka  Introvert ka khitap Introvert honi ki jo safar thi   Kuch asse thi uss ladki ma Ki usse janne vali tu kia Usee khud ko hi yakeen nhi thi  Ki bo kobhi introvert thi  Bo School ma srif ak hi friend ma supki rahna Aur usee ki sath har jagah jana Vo class room me akka koni ma bethna Aur ghantu apni notebook me dekhi rhna Usee sab yad ha Bo school khatam hote hi  friend se link tutt jana Jo khud kobhi kahti thi  hamare sath kobhi na sorr jana Bo har class mate ka usee you kah jana ki Yarr usee ittni attitude ha  Ya tu bolti bhi nhi ha Aur yah jante hua vi bas haste haste  Sob kuch sahi janeUsee sob yadd ha Uska vo kise ocation me jaki Apni maa ki pisse sup janna Bo nesse najjre korki  Har kisse ka jabab de jana Usee sab yadd he Kise guest ki ghar aa jane se  youhe  komre me sup jana Aur uski jatte hi bahar nikal ki anna Usse sab yaad ha Bo sabhi ka usee figure ki barre ma sunana Ki yarr tum kitni pa

आधी आबादी :पूरी आजादी

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  छू ले हर ऊंचाई तू  किसने तुझको रोका है,   बार कल कुछ और थी  फिर से आज मौका है।    पर खोल के हो आजाद  डर ना  इस आसमान से,  कमर कस ले आज हो  लड़ना है अभी जहान से ।  ये बंदिशें ये बेड़ियाँ तुझे ना रोक पाएंगे,  इरादों को शमशोन कर  ये खुद ही टूट जाएगी।  सर झुके थे, सर झुकेंगे फिर से तेरे सामने,  थी मज़ाल कब किसी को तुझे झुका दे अपनी शान में।  तूने तो हतिहास रचा है अब तक अपने काम से,  बनी है बनतो रहेंगी गाथाएँ तेरे नाम से।  तू किसी से कम नहीं है  प्रचंड तेरे काया है,   शिकस्त होके चित पड़े  जिसने भी आज़माया है।   चीर के  फ़लक को तूने  धवज  ऊँचा लहराया है,  सर उठा के  देख ले  वह वक्त फिर से आया है।   सर उठा कर देख ले  वह वक्त फिर से आया है।।  -  pranti deka