घुंघट प्रथा

                               घुंघट प्रथा

घूंघट शर्म और मर्यादा का पदौ  नहीं बल्कि 
औरतों को वह जंजीरें है जिसने औरतों को कई 
हक ना लेने से बांध रखा है। औरतों को घुंघट
ने चार दीवारों में कैद कर लिया है, और लोग
कहीं ना कहीं  यह मान्यता  रखते हैं कि स्त्रियां 
बस घर के कामकाज करने के लिए और अपने 
पति कि सेवा करने के लिए ही बनी है। आज 
भी देश में कई जगहों पर स्त्रियों को सम्मान या
उनके अधिकार दिए नहीं जाते, वो आज भी
यह सोच रखते हैं कि अगर हम लड़कियों को
पढ़ाएंगे तो हमारा किया हुआ खर्चा बर्बाद हो 
जाएगा क्योंकि वो कल किसी और के घर जाने
वाली है यहां हम इसे खर्चा करके पढ़ाएंगे और
वो उसकी पगार मुफ्त में लेंगे, मगर वो लोग यह
भूल गए कि अपनी बच्ची को या अपनी बेटी 
को करियावर में ढेर सारे रुपए या जवेरात देने
से अच्छा है उसको एक अच्छा भविष्य देना 
ताकि जब कल को वो किसी मुसीबत में हो तो 
वो अपने पैरो पे खड़ी होकर कुछ कर पाए ना
की अपनी सास या अपने पति के ताने या जूते
खाए। आज भी स्त्रियों को कला, कोशल्या,
आवदत इस घूंघट के नीचे दब जाते हैं क्यों की
अगर किसी लड़की को पढ़ने का शौक हो और 
वो पढ़ लिखकर बड़ी डॉक्टर या इंजीनियर बनती 
है तो उसके ससुराल वाले उसको उसकी नौकरी
नहीं करने देते या यह बोल देते है अगर हमारे 
यहां आपको आपकी बेटी देनी है तो वो यह सब 
नहीं करेगी और घर में कैद रहेगी। और यहां 
उसका भविष्य उसके सपने सारे चूर-चूर हो जाते
है और एक घूंघट के नीचे छुप जाते है या फिर
छुपा दिए जाते है।। 

घूंघट को ढक लेने से या मुंह को छुपा लेने 
से गर स्रियों कि इज्जत बच जाती है तो वो
आपकी गलतफहमी है वह ढकने वाली के
नहीं बल्कि देखने वाले की नियत पर निर्भर
करता है कि घूंघट के नीचे बहन, भाभी या
कोई और है या एक सुंदर  जिस्म ..!! 

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