उन दिनों की बात

बात तब की है जब बहोत छोटी थी मै ठीक से बोल भी नहीं पाति थी जब हर बात दिल से हुआ करती थी बस लबो पे आके लडखडाती थी दुनिया की समझ खा़स नहीं थी मुझको हर कोई अपना लगता था साथ जो भी खेलता था मेरे इंसान अच्छा लगता था शायद यही नासमझी में मैं कुछ समझ नहीं पायी हंसते हंसते रो जाती क्यों थी यह बात जान नहीं पायी कयूं हर बार छुपन छपाई का खेल ...