दफ़न ....
दफ़न .... दफ़न .... हर आरज़ू हर सपना खुद को भी दफ़न किया मैंने किसी और के सपने को पूरा करने के लिये, उठा सवाल आईने में खड़े शख्स के सामने, कौन हूँ मैं, क्या हूँ और क्यों हूँ खुश हूँ मैं क्योकि मुझसे जुड़े लोग खुश हैं जीना चाहती हूँ खुद के लिए, करना चाहती हूँ जो दिल में हैं उसे, ना चाहकर भी सपने,अपने दफ़न किये मैंने, क्योकि कुछ रिश्तों की डोरियों ने इस कदर बांध दिया मुझे। एक दिन ऐसा आया था, नई ज़िन्दगी ने हमे पुकारा था, रंग से थी मैं काली, हर किसी ने कह ये ठुकराया था, खुद से ही दूर गयी थी मैं, जब नफरत खुद से हुई थी, आखिर कमी कहाँ थी मुझमें, बस रंग से ही तो काली थी, सौ कमियां निकाली जाती थी मुझमें, जब बात शादी की आती थी, आखिर इंसान खुद में क्यों नही देखता, कमिया तो हैं हर किसी में पाई जाती , दर्द उस वक़्त का ,कौन हैं समझता, जब हमें showpieace बना , रिश्ते वालो के सामने हैं रखा जाता ********** सोच एक नही हमारी , हर दिन तो लड़ाई होती हैं हाँ बाते भी कहाँ रोज़ होती हैं पर शिकायते भी बहुत होती हैं तुझसे बिना सोचे कुछ भी तो कह देती हूँ, जबकि जानती हूँ ,मैं स