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दफ़न ....

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दफ़न .... दफ़न ....        हर आरज़ू          हर सपना खुद को भी दफ़न किया मैंने  किसी और के सपने को पूरा करने के लिये, उठा सवाल आईने में खड़े शख्स के सामने, कौन हूँ मैं, क्या हूँ और क्यों हूँ  खुश हूँ मैं क्योकि मुझसे जुड़े लोग खुश हैं  जीना चाहती हूँ खुद के लिए, करना चाहती हूँ जो दिल में हैं उसे, ना चाहकर भी सपने,अपने दफ़न किये मैंने, क्योकि कुछ रिश्तों की डोरियों ने इस कदर बांध दिया मुझे। एक दिन ऐसा आया था, नई ज़िन्दगी ने हमे पुकारा था, रंग से थी मैं काली, हर किसी ने कह ये ठुकराया था, खुद से ही दूर गयी थी मैं, जब नफरत खुद से हुई थी, आखिर कमी कहाँ थी मुझमें, बस रंग से ही तो काली थी, सौ कमियां निकाली जाती थी मुझमें, जब बात शादी की आती थी, आखिर इंसान खुद में क्यों नही देखता, कमिया तो हैं हर किसी में पाई जाती , दर्द उस वक़्त का ,कौन हैं समझता, जब हमें showpieace बना , रिश्ते वालो के सामने हैं  रखा जाता ********** सोच एक नही हमारी , हर दिन तो लड़ाई होती हैं  हाँ बाते भी कहाँ रोज़ होती हैं  पर शिकायते भी बहुत होती हैं तुझसे बिना सोचे कुछ भी तो कह देती हूँ, जबकि जानती हूँ ,मैं स

हमेशा क्यों उन्हें ही सिखाया जाता हैं,

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 हमेशा क्यों उन्हें ही सिखाया जाता हैं,     हमेशा क्यों उन्हें ही सिखाया जाता हैं, कहाँ जाना हैं क्या करना हैं ,क्या पहना हैं , कहाँ बोलना हैं ,कहाँ चुप रहना हैं , ये उन्हें बचपन से सिखाया जाता हैं  वो भी इंसान हैं ,थोड़ी चंचल थोड़ी सी पागल हैं, कुछ सपने उनके भी हैं यार, जो उन्होंने पूरा करने की ठानी हैं, फिर क्यों....किसी और की वजह से उसकी उमीदों को मार दिया जाता हैं , और जब ससुराल में अत्याचार बढ़ रहे होते हैं , तो फिर क्यों उसको समाज के डर से चुप कर दिया जाता हैं , सिर्फ तुमारी इज़्ज़त न जाएं, इसलिए उसकी जान को दांव पर रख दिया जाता हैं , कितने सपनो को वो बेचारी मन में दबा लिया करती हैं, अपना घर छोड़ ,दूसरे के घर को सँवार दिया करती हैं, दुख का दामन समेट ,सुख की मिठास बॉट दिया करती हैं। ******** एक छोटी बच्ची के दर्द की कहानी , उसी की जुबानी...... कुछ आँखों के ख्वाब,आँखों में ही रह गए, जिन्होंने बचपन को मेरे रौंदा ,वो मरे बिना कैसे रह गए, क्या हुआ ,कैसे हुआ,ये पता नही चला, पर दर्द जो हुआ वो सहा नही गया, जब रोते भिलखते घर गयी मैं, बताया कि क्या सह रही हूँ मैं, घर की इ

*मैं लाखों की*

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*मैं लाखों की* पहली बार खुद की कदर जानी बिस्तर पर पड़ी तो कीमत पहचानी झाड़ू पौछा, दो हजार खाना, चार हजार कपड़े, डस्टिंग, तीन हजार ओर चाय नाश्ता ..... उफ़ क्या क्या लिखूं....?????? दस हजार देकर भी मिलती नहीं घर मैं कोई बाई  टिकती नहीं और मैं बरसों से टिकी हूं बिन सैलेरी के ही रुकीं हुं बीस साल का तो लाखों हो गया और वो कहते रहे कमाती नहीं हो   वेशक कमाया नहीं पर बचाया तो हैं मकान को घर बनाया तो है आज जब चाय बनाते हों चार बार पूछनें जो आते हों फिर भी मेरी तरह ना बना पाते हो और तुमने जो पोहे बनाएं आधे कढ़ाही में थे चिपकाएं और परांठा को पापड़ बनाया जो हमने प्यार से था खाया माना तेरा किया बहुत है पर मेरा किया कम तो न था घर को सहेजना  मेरा शौक नहीं जरूरत थी काश ये तुम समझ जाते तो मेरे किये को हल्का न बताते। सभी महिलाओं को समर्पित *********   ये आँखो  सवेरे रोशनदान से जब धूप छटकती है एक धूँधली सी तस्वीर उभरती है वो क्या है उसको तो मैं नही जानता मगर मेरी आँखो में बहुत मचलती है सपनो को उसी ने नाराज़ किया है मेरी परछाई को मेरे खिलाफ किया है मेरी आँखे इंतज़ार बर्बादी का ऐसे क

ये शोर

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    ये शोर कोई वैक्सीन को रो रहा है। तो कोई वैक्सीन से रो रहा है महामारी के, इस दौर में शोर कुछ यूँ हो रहा है। कोई मेहंगाई को रो रहा है तो कोई पेट्रोल को रो रहा है। घर हो या बाजार, शोर कुछ यूँ हो रहा है। कहीं न्यूज़ में बबाल, तो  कहीं चुनावी सवाल आ रहा है। सच पड़ा है कोने में, फिर भी शोर कुछ यूँ हो रहा है। कोई हांथों को रो रहा है कोई फूलों को रो रहा है। न जाने कहाँ गिरेंगी, उंगलीं सबकी शोर कुछ यूँ हो रहा है। ****** मैंने सिर्फ एक बार देखा तुम्हे, फिर पलट के ना देखा उसे  चांद चिल्लाता रह गया, चांद मैं हूं, चांद मैं हूं।     मैंने सिर्फ एक बार तेरी रबजो से शबाब पिया फिर  पलट के ना देखा उसे,  शराब चिल्लाता रह गया शराब मैं हूं, शराब मै हूं।       मैंने सिर्फ एक बार सुना तुम्हे, फिर पलट के ना देखा उसे, श्वर चिल्लाता रह गया, संगीत मैं हूं, संगीत मैं हूं।      मैंने सिर्फ एक बार छाव  ली तेरी जुल्फो की, फिर पलट के ना देखा उसे, बाग चिल्लाता रह गया, बाग मैं हूं, बाग मैं हूं।        और मैंने सिर्फ़ एक बार सजदा किया तेरा,    फिर पलट के ना देखा उसे,    खुदा  चिल्लाता रह गया, ख

गुज़रा वो दौर

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गुज़रा वो दौर  पहले का प्यार कितना मासूम था ,  छत पर किताब के आड़ से उसे झुक झुक कर देखना ,  कभी पसंदीदा गाने के कुछ बोल गुनगुनाना ताकि वो सुने और शर्मा के हस दे ज़रा ।  गुजरा वो दौर ।  पहले के प्यार कितना मासूम था ,  जब लोग चिट्ठियाँ लिखा करते थे ,  कभी वो चिट्ठी के बोल तो कभी उसके जवाब का इंतेज़ार  करना ।  गुज़रा वो दौर । पहले का प्यार कितना मासूम था ,  बस एक दूसरे का हाथ थाम कर चलना उन ख़ामोश  गलियों में ,  और चुपके से कोई गुलाब का फूल उसकी  चोटी में मालना ।  गुजरा वो दौर । पहेले का प्यार कितना मासूम था,  तब इंसान के तनख़्वा की नहीं इंसान की कदर होती थी ,  तब तो सिले हुए कपड़े , पैदल चलने का जमाना था ,  बत्तियाँ या तो ख़ैर थी पर candle light वाला dinner तो जाने रोज़ का ही था ,  गुजरा वो दौर ।  अब तो प्यार !!!!! .... ख़ैर छोड़िये फिर कभी  *******  वो  "ये फिजा क्यों बेवक्त मुस्कुरा रही है, यार जरा देखो क्या वो फिर से आ रही है। यूं तो बंजर पड़ा है सारा जहां हमारे लिये, लेकिन ये चांदनी क्यों महका रही है।। यार जरा देखो क्या वो फिर से आ रही है।। इश्क इब्दिता इ

ये जमाने

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 ये जमाने  आज फिर किसी का चेहरा  जला वो लोग चले गए उसने प्यार करने से मना किया वो लोग लाश बनाकर चले गए दिल मिलाने का सोचा था गुस्सा दिखाकर चले गए ये लोग क्या प्यार करेंगे जो झूठी मर्दांगी दिखा चले गए इस पीढ़ी ने ये शौक पाला है जबरन प्यार माँगते चले गए बेटी ने अंधेरे को भविष्य समझा बाप बेहतर कल को तरसते चले गए वो बेऔलाद सत्ता में बैठे वादा करते-करते चले गए सुननेवालो ने औलादे खोई सब आए रोकर चले गए फिर वहाँ किसी को ईश्क न हुआ कितने ही ज़माने चले गए ऐसा जीवन हुआ वहाँ मानो बिन जन्मे ही मरते चले गए !! ****** इस  जमाने में कुछ ढूँढता सा रह गया, उसकी आवाज़ के लिए सब सह गया, जिस इंसान के लिए हर वक़्त हर वक़्त  से लड़े वो इंसान तुम कौन हो कह गया, इस  जमाने में कुछ ढूँढता सा रह गया, ये  नूर, हुस्न और  जाने क्या-क्या गया उस बाढ में जो भी आया सब बह गया, इश्क़ में तो मीर ग़ालिब के भी घर गिरे  तो मैं क्या था , मेरा  मकाँ भी ढह गया, मैं कुछ बोलता उसे तो लबो पर हम था हमराही तो कही चला गया मैं रह गया, ******* अन्तरयुद्ध उलझने क्या बताऊँ ज़िन्दगी की अब, जब जंग ख़ुद से ख़ुद

नास्तिक नहीं हु

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नास्तिक नहीं हु  में नास्तिक नहीं हु बस फर्क सोच का है जो आपमें और मुझमे भेद करवाता है  आप मिलोका सफर तय कर उसे मिलने जाते हो में उसे घरमे ही मिल लिया करती हु  आप आस्था से जो बनपड़े वो पेटी में डालते हो  में उन्ही रुपियोसे किसा का पेट भर दिया करती हु  आप माथा टेके मिन्नते मांगते हो  में हात जोड़े दुआ ले आती हु  आप उसे खुश करने के लिए हवन करवाते हो  में उसे खुश करने के लिए किसी और को खुश कर आती हु  आप दूध भगवान को चढ़ाते हो  में दूध किसी गरीब के बच्चे को दे आती हु  आप अक्सर उसे मंदिरो में खोजा करते हो  में उसे झोपडी में तराशा करती हु अगर लगे अभी में नास्तिक हु  तो में नास्तिक रहना ही पसंद करती हु                           ******* मुझे समझने  के लिए मुझमें उतरना होगा, मेरी गिली आँखो से तुझे पानी भरना होगा, मोहब्बत ख़ुशी तो दो वक़्त की देती है बस इसे समझने  के  लिए इसमें जलना होगा, तुम कहते हो की मैं तुम्हारी बाते उड़ा दूँगा  तो ये देखने  के लिए पहले मुकरना होगा, हाँ नहीं  समझा हूँ  अभी तुझे पता है मुझे अभी तुझे थोड़ा पढ़ना और समझना होगा, इतनी जल्दी अगर मोहब्बत मील जा