ये जमाने
ये जमाने
आज फिर किसी का चेहरा
जला वो लोग चले गए
उसने प्यार करने से मना किया
वो लोग लाश बनाकर चले गए
दिल मिलाने का सोचा था
गुस्सा दिखाकर चले गए
ये लोग क्या प्यार करेंगे जो
झूठी मर्दांगी दिखा चले गए
इस पीढ़ी ने ये शौक पाला है
जबरन प्यार माँगते चले गए
बेटी ने अंधेरे को भविष्य समझा
बाप बेहतर कल को तरसते चले गए
वो बेऔलाद सत्ता में बैठे
वादा करते-करते चले गए
सुननेवालो ने औलादे खोई
सब आए रोकर चले गए
फिर वहाँ किसी को ईश्क न हुआ
कितने ही ज़माने चले गए
ऐसा जीवन हुआ वहाँ मानो
बिन जन्मे ही मरते चले गए !!
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इस जमाने में कुछ ढूँढता सा रह गया,
उसकी आवाज़ के लिए सब सह गया,
जिस इंसान के लिए हर वक़्त हर वक़्त
से लड़े वो इंसान तुम कौन हो कह गया,
इस जमाने में कुछ ढूँढता सा रह गया,
ये नूर, हुस्न और जाने क्या-क्या गया
उस बाढ में जो भी आया सब बह गया,
इश्क़ में तो मीर ग़ालिब के भी घर गिरे
तो मैं क्या था , मेरा मकाँ भी ढह गया,
मैं कुछ बोलता उसे तो लबो पर हम था
हमराही तो कही चला गया मैं रह गया,
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अन्तरयुद्ध
उलझने क्या बताऊँ ज़िन्दगी की अब,
जब जंग ख़ुद से ख़ुद ही का हो
तो जीत क्या और हार क्या ?
समझाना चाहती हूँ, पर कोई समझता नहीं
या समझना नहीं चाहता !
अपने अंदर के सैलाब को आँखों से बहाना चाहती हूँ,
पर कोई महसूस करता नहीं
या करना नहीं चाहता !
आभास मेरे दर्द का तो चेहरे पे साफ दिखता है,
पर कोई देखता नहीं
या देखना नहीं चाहता !
अब तो ख़ुद से ख़ुद ही डरती हूं
डरना चाहती तो नहीं
पर डरा दी जाती हूं।।।
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कभी ऐसे कभी वैसे
कभी कोई पूछता हैं हाल ,तुम्हें जताने के लिए की किस
दौर से गुजर रहे हो तुम ,
कभी कोई हाथ में प्यार से बनी चाय की कप थमा जाता हैं और धीरे से कंधे को सहलाता हैं!!
हमें बस वो सहलाने वाला चाहिए ।
इन में ज़रूरी नहीं की हिस्सेदार कोई बाहर वाला हो।। कोई अपने भी होते हैं दूर से तुम्हारे लड़खड़ाने का इंतेज़ार करते हुए !
ताकि जब आप गिर जाओ तो हँसे ।।
पर हमारे पास कुछ वैसे भी हैं जो क़रीब आकर हाथ थामे !!
हमें बस वो हाथ थामने वाला चाहिए !
पर कभी सोचा हैं आपने हम अनजाने में ही क्यू ना सही ज़िक्र हमेशा उनका ही करते हैं जिनकी हमें ज़रूरत नहीं ।
अपनो का ज़िक्र तो हम वैसे भी भूल जाते हैं :)
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