कुछ पंक्तियां

 कुछ पंक्तियां



नकाब दर नकाब चढ़े चेहरों को
आइनों से खतरा है
दीमकों जैसे इस समाज को
रोशनी से खतरा है
भेड़िए हुए है सब यहां इन्हें
मासूमियत से खतरा है
घृणा द्वेष से बिलबिलाता इंसान
इसे प्रेम भाव से खतरा है

होंगे कुछ इंसान भी यहां
चुप हैं लाचार है बेबस हैं
व्यभिचार के प्रचंड तांडव से त्रस्त
भगवान की इस पवन श्रृष्टि को
उनकी बेबसी उनकी चुप्पी से खतरा है


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तुम जवां हो गई  पर,मै बचपन से निकला हि नहीं
जिस राह से जाती रही, बस उसके पीछे चला

अभी भी, वहीं जिद्द
शरारत और
सपने सजाए हुए
तुमसे ब्याह रचाने की,
बनारस घुमाने की
और वो कुल्हड़ वाली चाय पिलाने की

ये बेफिजूल लगती है तुम्हे,
बेतुकी, और बेवकूफी भी
हंसी आती है मेरे बातों पर
पर तुम हो रुकी हुई

तुम जवां हो गई  पर,मै बचपन से निकला हि नहीं
जो दिल मचला था, अब तक है मचला

हमाकत कहो हमारी
या नादानी
या इश्क़ में डूबा देवदास
न चंद्रमुखी है, ना पारो है
फिर भी रुक नहीं रही उसकी रास !

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हलचल करती हुई नदी नही ,
गहरे समुन्दर जैसा शान्त बनना तुम ,
कश्मकश से उलझी जिन्दगी नही ,
उजली किरणों से रंगी ,
खुली किताब लिखना तुम ,
ख्वाबों की गली की बेबसी नही ,
हो जाए जो भी पूरे वो अरमान संजोना तुम ,
जबरदस्ती के रिश्तो की संगिनी नही ,
रुह को जो भी छू जाए ऐसा चुनना साथ तुम ,
अपनी कमजोरियों पर शर्मिन्दगी नही ,
बल्कि खुद की खुबियों पर  करना नाज तुम
किसी दूसरे की सिर की नही बोझिल
अपने पैरों पर चलकर मुकाम अपना ढुढ़ना तुम |

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कुछ रातें होती हैं 
जो मौत तक का 
अहसास दिला जाती हैं। 

रातो में आँखो के कोने का
 वो गीलापन समंदर से भी खारा होता है 
और फिर हम लेते हैं एकांत की शरण..
जहाँ दुख और गहरा हो जाता है,
चुप्पियाँ और बढ़ जाती है..
और बाद में हम उससे बाहर आकर 
खुद को सामान्य दिखाने का ढोंग करते हैं!
खैर..!

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जब दिल दुखे ,मन हो परेशां तो सुकूँ देने को
 एक हल्की सी मुस्कुराहट ही काफी है,

सामना हो जब जमाने भर की सर्द हवाओं से 
तब पल भर की धूप ही काफी है

जरूरत कहाँ है इश्क़ के प्यासे को सागर की , 
मुकम्मल करने को दो दिलो की दास्ताँ
सच्ची मोहब्बत की एक बूंद ही काफी है

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