शिशु की कामना"
कोमल सी पंखुड़ी में
पानी की नन्ही बूंद सा वो
विलाप करता ,
चाहता मां का आँचल
हर पल-हर समय,
मुट्ठी बंधे नाज़ुक हाथों में
उंगलियां थामना चाहता है,
नाप लेना चाहता है
धरा की सुंदरता माँ की
उंगलियों से,
कर लेना चाहता है
अमृत को अपने
कंठ में अवतरित,
चाहता है बस वो आँचल
जिनमे हो ममता की छाया,
वो झिलमिलाती आंखें
देखना चाहती हैं अपने
सृजन का आधार,
वो स्पर्श जो जन्म के पश्चात
चाहता है परिशुद्ध प्रेम;
जिनमें हों अनंत तक सिर्फ प्रेम,
क्यों वंचित हो जाता है वो शिशु
जिसके सृजन का आधार
नस्वर हो गया हो संसार से
और बिलख रहा हो
अपनी करुणामई अंतर्मन की पुकार से!
🙂🙂
बहुत सुंदर मित्र
ReplyDeleteThanks dear
DeleteThank u🙂
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